महज तीन महीने में ही दिल्ली उच्च न्यायालय पर दूसरा बड़ा धमाका हुआ। जाहिर है कि सरकार और उसका सुरक्षा तंत्र निश्चित था और आंतकी चुस्त। वर्तमान विश्लेषण में विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सवा तीन महीने पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय में हुआ विस्फोट तो रिहर्सल मात्रा था और यह है असली धमाका। 26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकी धमाके को केन्द्रीय गृह मंत्री ने ‘‘अन्तिम आतंकवादी हमला’’ बताया था। तब केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा तय किया गया था कि अमरीकी पद्धति पर आंतरिक सुरक्षा की एक केन्द्रित और तत्पर कमान होगी लेकिन 13 जुलाई 2011 को ही इस दावे की हवा निकल गई जब मुम्बई धमाके से एक बार फिर दहली। इसी तर्ज पर आज दिल्ली का उच्च न्यायालय दुबारा घायल हुआ है। समझा जा सकता है कि सरकार प्रशासन और सुरक्षा तंत्र न तो चुस्त है और न ही दुरूस्त। आम आदमी के जान की कीमत कौड़ियों के बराबर समझने वाले राजनेताओं की प्राथमिकता सत्ता सुख का आनन्द लेने और कारपोरेट की सेवा करने तक सीमित हो गई है तभी तो जनहित और आम जनता की सुरक्षा के सभी दावे खोखले सिद्ध हो रहे हैं।
आन्तरिक सुरक्षा का सवाल भारत के लिये नया नहीं है। इतिहास में जाएं तो देखेंगे कि आजादी के बाद से ही देश के विभिन्न हिस्से हिंसक आन्दोलनों से लहुलुहान होने लगे थे। चाहे पूर्वोत्तर हो या दक्षिण भारत, कश्मीर हो या आन्ध्रप्रदेश या छत्तीसगढ़ सब जगह हिंसा और आतंकी पाठशाला चल रही है। इन सभी जगहों पर सेना भी तैनात है। लेकिन हिंसा और आतंक है कि थमने का नाम नहीं ले रही। राजनीतिक चिंतक कह रहे हैं कि ‘‘हिंसा पर अहिंसा से काबू नहीं पाया जा सकता।’’ यह बहस तो कभी आगे देखेंगेे। फिलहाल सवाल यह है कि हिंसा और आतंक का बन्दूक से जवाब देने के बावजूद सरकार आंतकी हमले को रोकने में विफल क्यों है? हर बार ठिकरा खुफिया एजेन्सियों एवं राज्य सरकारों के सर पर फोड़ा जाता है। ठीक है कि आन्तरिक सुरक्षा राज्य का मामला है लेकिन नीतियां तो केन्द्र सरकार की चलती है और इसी का असर बार-बार होते आतंकी हमले पर दिखता है।
कई सुरक्षा विशेषज्ञ भारत में भी अमरीकी सुरक्षा व्यवस्था के पैरोकार हैं। स्वयं केन्द्र सरकार और उसके मौजूदा गृहमंत्री अमरीकी सुरक्षा व्यवस्था से अभिभूत भी हैं। टेलिविजन पर चल रही चर्चाओं में आप लगभग एक जैसा स्वर ही सुनेंगे कि अमरीका की तरह भारत को भी अपनी सुरक्षा के लिये अति आधुनिक तकनीक और भारी सुरक्षा खर्च पर गौर करना चाहिये। ऐसा नहंीं है कि हमारे इन विशेषज्ञों को भारत और भारतीय परिस्थितियों की जानकारी नहीं है लेकिन वास्तव में कोई भी आम भारतीय या सामान्य जनों की सुरक्षा को लेकर गम्भीर नहीं है। तभी केन्द्र और राज्यों में बन रही या लागू की जा रही नीतियों में कहीं आम-आदमी नजर नहीं आता।
सब जानते हैं भारतीय राजनीति और सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है। विगत ढाई वर्षो से यूपी.ए. सरकार भ्रष्टाचार को ही डिल करने में लगी हुई है लेकिन भ्रष्टाचार और महंगाई है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही। एक-दो ईमानदार चेहरे (मुखौटे) दिखा कर मौजूदा सरकार लोगों को समझाने में लगी है कि हम भ्रष्टाचार और महंगाई को खत्म करना चाहते हैं लेकिन हर रोज उनकी हकीकत की कलई खुलती देखी जा सकती है। अब कौन विश्वास करेगा कि रोज-रोज होती आतंकवादी घटना महज ‘‘खुफिया चूक’’ या ‘‘सुरक्षा एजेन्सियों के आपसी तालमेल की कमी’’ का नतीजा है।
26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकी हमले की घटना को ही देखें तो तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल की बली देकर केन्द्र सरकार ने लोगों का गुस्सा शान्त कर दिया था लेकिन अब जब सत्ता के गलियारे से ही छन कर यह खबर आ रही है और सवाल उठ रहे है कि मुम्बई हमले के मास्टर माइण्ड हेडली को लेकर हमारे तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार कितने गम्भीर थे। इस पर न तो स्वय तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार और न ही सरकार अपना मुह खोल रही है। मुम्बई हमले से जुड़े कई मामले आज भी उपेक्षित पड़े हैं। आन्तरिक सुरक्षा के नाम पर की जा रही कवायद महज कागजी कार्रवाई से ज्यादा कुछ नहीं है।
भारत में आतंकी हमले के कई मामले इसकी गम्भीरता का अहसास कराते हैं। मुम्बई, दिल्ली व अन्य महत्वपूर्ण स्थानों के अलावा संसद, न्यायपीठ एवं मीडिया लगभग सभी तंत्रों को आंतक ने अपनी धौंस दिखा दी है लेकिन तंत्र है कि खिसियानी बिल्ली की तरह अभी भी खम्भा ही नोच रहा है। अब तो आम आदमी भी जानने लगा है कि दिन-प्रतिदिन भ्रष्ट से भ्रष्टतम होता सरकारी तंत्र उस पर उंगली उठाने वालों को ही सबक सिखाने में लगा है। देखा जा सकता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल की मांग करने वाले या घोटाले उजागर करने वाले लोगों/पत्रकारों के साथ सरकार कैसा बर्ताव कर रही है।
दिल्ली उच्च न्यायालय पर 7/9 का आतंकी हमला केन्द्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम के उस दावे की पोल खोलने के लिये काफी है जिसमें उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि 26/11 का हमला भारत पर अन्तिम आतंकी हमला है। आज सच सामने है। गृह मंत्री के आन्तरिक सुरक्षा संबंधी सभी दावे फिस्स हो गए हैं और आंतक पहले से ज्यादा मुखर और निर्भीक होकर भारतीय शासन व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। सवाल यह उठता है कि भारत में बार बार हो रहे आतंकी हमले की मुख्य वजहें क्या हैं? इनमें यहां की लचर शासन व्यवस्था, कमजोर खुफिया तंत्र, नकारा, पुलिस, भ्रष्ट अधिकारी और दृष्टिविहीन नेता के साथ-साथ गफलत में जी रही जनता भी जिम्मेवार है। इससे भी ज्यादा जिम्मेवार तो भारतीय शासन तंत्र की लचर नीतियां और कमजोर सुरक्षा तैयारी को ठहराया जाना चाहिये जिस पर कभी सरकार गम्भीर नहीं दिखी।
आंतक और आंतकी के जाति, धर्म और राजनीति ने भी भारत में आतंकवाद को फलने-फूलने में मदद पहुंचाई है। सब जानते हैं कि अदालत की सक्रियता के बावजूद सरकारों ने आतंकी को बचाने के लिये कैसी कैसी राजनीति की। आज भी आतंक पर जारी बहस में आतंकी के पक्ष में तर्क देने वालों की कमी नहीं है जबकि न्याय की पूरी प्रक्रिया के बाद जब अदालतों ने कइ मामलांे मंे अपना फैसला सुना दिया है तब राजनीति इसमें अपना नफा-नुकसान ढूढ़ने लगी है। राजनीति के इस गिरगिटी रूप का आतंक पूरा फायदा ले रहा है और जब उसे आम आदमी के खून का स्वाद मिल चुका हो तब भला वह चुप कैसे बैठ सकता है।
सब जानते हैं कि सरकारों ने ही आन्तरिक सुरक्षा के ढांचे को तोड़ा है। वैश्वीकरण और उदारीकरण के बाद आंतकवाद को फलने-फूलने में खासी मदद मिली है। समताए सुशासन और ईमानदारी के अभाव में भी आतंक को बल मिलता है। न्याय और कानून को लागू करने वाली एजेन्सियों पर यदि राजनीति कुंडली मार कर बैठ जाए तो भला ये तंत्र आतंक का मुकाबला कैसे कर सकते हैं। खासकर जिस सरकार के मंत्री और अधिकांश अफसर भ्रष्टाचार में लिप्त हों वहां आतंक से मुकाबले की बात बेमानी है। दिल्ली उच्च न्यायालय की देहरी पर आतंक का यह विस्फोट चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि जब लोकतंत्र की सबसे बड़ी खैरख्वाह संसद और भारतीय राजनीति में आतंक को चुनौती देने की कुव्वत नहीं तो न्यायपालिका अपनी अति सक्रियता बन्द करे। दरअसल यह चुनौती नहीं युद्ध है जिसका मुकाबला न्यायपालिका ही नहीं सरकार और आम आदमी को मिलकर करना होगा। और वह भी राजनीति से ऊपर उठकर।
A Senior Homoeopathic Medical Consultant & public Health Activist.Regularly Writing on Various Health, Environmental & Socio-Political issues.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बढ़ती महामारियों के दौर में
कोरोना वायरस के त्रासद अनुभव के बाद अब देश में एच 3 एन 2 इन्फ्लूएन्जा वायरस की चर्चा गर्म है। समाचार माध्यमों के अनुसार...
-
-डा. ए. के. अरुण लोगों में होमियोपैथी की बढ़ती लोकप्रियता ने सरकार और समाज दोनों को खासा प्रभावित किया है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ही...
-
कोराना वायरस का नाम अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। दुनिया का कोना-कोना अब कोरोना से वाकिफ है। वैश्वीकरण यहाँ साफ तौर पर साकार दिखता है। ...
-
कोरोना वायरस के त्रासद अनुभव के बाद अब देश में एच 3 एन 2 इन्फ्लूएन्जा वायरस की चर्चा गर्म है। समाचार माध्यमों के अनुसार...
No comments:
Post a Comment