Friday, September 9, 2011

क्यों बढ़ रहे हैं आतंकी हमले

7/9 को दिल्ली उच्च न्यायालय पर हुआ आतंकी हमला आम लोगों द्वारा आतंक को सहते रहने की मजबूरी से ज्यादा भारतीय शासन तंत्र द्वारा आतंक पर राजनीति करते रहने का नतीजा है। ‘‘आतंक’’ भी इतना बेखौफ और निश्चित कि उसने महज साढ़े तीन महीने में ही पलट कर अपने-उसी सुनियोजित एवं सुविचारित टारगेट पर फिर से आक्रमण किया। ठीक वैसे ही जैसे 26/11 के बाद 13/7 को आतंक ने मुम्बई को दोबारा निशाना बनाया था। 26/11 के बाद नवनियुक्त गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने घोषणा की थी कि भारत पर यह अन्तिम आतंकवादी हमला है। भारतीय शासनतंत्र की बारीकियों और यहां के शासक वर्ग की प्रवृतियों से पूरी तरह वाकिफ ‘‘आतंक’’ इस मामले में आश्वस्त है कि यहां उसके खिलाफ कोई मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति तो है नहीं, सो जो भी चाहो, जहां-चाहो खुलकर करो।
बार-बार आतंकी हमले झेलता हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानी आवाम की हकीकत यह है कि वह सत्ताधारी वर्ग द्वारा ‘‘राम भरोसे’’ छोड़ दिया गया है। आम आदमी की हैसियत सिर्फ कर चुकाने और सत्ता की जी हजूरी करने से ज्यादा कुछ नहीं है। 26/11 को मुम्बई और आतंकी हमले के बाद इसी यू.पी.ए. सरकार के गृहसचिव के नेतृत्व में गठित समिति ने जांच के बाद कहा था कि देश में द्रुत कार्य बल (क्यू.आर.टी.) का गठन किया जाएगा, राज्य और औद्योगिक सुरक्षा बल की स्थापना तथा प्रधान गृह सचिव को आई.बी एवं रॉ समेत विभिन्न सुरक्षा एजेन्सियों से सूचना प्राप्त करने के लिए नोडल अधिकारी बनाया जाएगा लेकिन आज भी स्थिति में ज्यादा परिवर्तन नहीं है। सच्चाई यह है कि क्यू.आर.टी. को यूनिफार्म तक उपलब्ध नहीं कराया जा सका है और राज्य औद्योगिक सुरक्षा बल के गठन की भूमिका भी नहीं बन सकी है।
भारत में बढ़ते आतंकी हमले का एक पहलू यह भी है कि भारतीय राज्य एक नरम राज्य है। बार बार आतंक से मिल रही चुनौती का करारा जबाव देने की बजाय भारत सरकार आन्तरिक राजनीतिक विवाद या तुष्टीकरण की राजनीति में व्यस्त हो जाती है। 26/11 के बाद यह जोर देकर कहा गया था कि ‘‘जेड सुरक्षा’’ के प्रति अभिजात्य वर्ग की सनक को कम कर इसमें लगे संसाधनों का उपयोग आम नागरिकों की सुरक्षा में किया जाएगा, लेकिन लाल बत्ती वाले सामन्ती लोकतंत्र में ऐसी उम्मीद बेमानी है। आतंक से लड़ने की सरकारी इच्छा शक्ति का नजारा देखिये। पाकिस्तान को सौपे आतंकवादियो की सूची भी दुरूस्त नही थी । लोकसभा में विदेश मंत्री भारतीय जेलों में बंद पाकिस्तानी नागरिक के बारे में जवाब दे रहे थे कि पाकिस्तानी जेल में भारतीय नागरिक बंद हैं। वो तो भला हो प्रधानमंत्री का जो बीच में ही टोक कर विदेश मंत्री का भूल सुधार कर लिया। यही विदेश मंत्री अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर जाकर भारत की ओर से किसी दूसरे देश का पर्चा पढ़ने लगते हैं। अभी जब 7/9 की घटना पर ग्रह मंत्री पी. चिदम्बरम संसद में बयान दे रहे थे। उन्हीं के बगल में बैठे दूसरे केन्द्रिय मंत्री विरप्पा मोइली ऊंघ रहे रहे थे। भारतीय शासन तंत्र के शासक वर्ग के चरित्र की यह तो मात्र बानगी है।
भारत में आतंक के पनपने की एक और बड़ी वजह है यहां राजनीति व शासन तंत्र की मुख्य धारा से आम आदमी को खारिज कर देना। देश की नीतियां बनाने वालों में कारपोरेट के दलालों और विदेशियों के पैरोकारों के बढ़ते वर्चस्व ने भारतीय राजनीति पर कब्जा कर लिया है। विगत दो ढाई दशक में भारतीय शासक वर्ग के रूप में जिस गिरोह ने अपनी पकड़ मजबूत बनाई है वह निरंकुश, बेशर्म और जनविरोधी है। आजादी के बाद सबसे ज्यादा सत्ता सुख भोगने वाली पार्टी कांग्रेस और इनके सहयोगी दलों ने मानों मान लिया है कि सत्ता महज पैसे और ताकत का खेल है। इसलिये सत्ता को पैसे और ताकत से प्राप्त करो और इसी ताकत से उस पर काबिज रहो। विगत 5,7 वर्षों में यू.पी.ए. सरकार का रिपोर्ट कार्ड तैयार करें तो देश एवं राज्यों में सत्ता पर काबिज इन दलों के नेताओं की करतूत और कालाबाजारी का स्पष्ट नमूना आप सबको दिख जाएगा। सरकार चाहे महराष्ट्र की हो या दिल्ली की भ्रष्टाचार के कीर्तिमानों के बावजूद इनके वजूद पर कोई खतरा नहीं है। इनकी मर्जी चले तो अगले चुनाव में भी सत्ता इन्हीं की होगी। इसलिये आम आदमी को अपनी असली हैसियत में आना ही होगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय पर 7/9 का आतंकी हमला केन्द्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम के उस दावे की पोल खोलने के लिये काफी है जिसमें उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि 26/11 का हमला भारत पर अन्तिम आतंकी हमला है। आज सच सामने है। गृह मंत्री के आन्तरिक सुरक्षा संबंधी सभी दावे फिस्स हो गए हैं और आंतक पहले से ज्यादा मुखर और निर्भीक होकर भारतीय शासन व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। सवाल यह उठता है कि भारत में बार बार हो रहे आतंकी हमले की मुख्य वजहें क्या हैं? इनमें यहां की लचर शासन व्यवस्था, कमजोर खुफिया तंत्र, नकारा, पुलिस, भ्रष्ट अधिकारी और दृष्टिविहीन नेता के साथ-साथ गफलत में जी रही जनता भी जिम्मेवार है। इससे भी ज्यादा जिम्मेवार तो भारतीय शासन तंत्र की लचर नीतियां और कमजोर सुरक्षा तैयारी को ठहराया जाना चाहिये जिस पर कभी सरकार गम्भीर नहीं दिखी।
आंतक और आंतकी के जाति, धर्म और राजनीति ने भी भारत में आतंकवाद को फलने-फूलने में मदद पहुंचाई है। सब जानते हैं कि अदालत की सक्रियता के बावजूद सरकारों ने आतंकी को बचाने के लिये कैसी कैसी राजनीति की। आज भी आतंक पर जारी बहस में आतंकी के पक्ष में तर्क देने वालों की कमी नहीं है जबकि न्याय की पूरी प्रक्रिया के बाद जब अदालतों ने कइ मामलांे मंे अपना फैसला सुना दिया है तब राजनीति इसमें अपना नफा-नुकसान ढूढ़ने लगी है। राजनीति के इस गिरगिटी रूप का आतंक पूरा फायदा ले रहा है और जब उसे आम आदमी के खून का स्वाद मिल चुका हो तब भला वह चुप कैसे बैठ सकता है।
हमारे शासक वर्ग और राजनीतिज्ञों को यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि आतंक को युद्ध से मिटाया नहीं जा सकता। यह राजनीतिक लड़ाई है लेकिन राजनीति की इस लड़ाई में तुच्छ राजनीति का कोई स्थान नहीं होता। किसी भी देश में कानून और व्यवस्था राजनीति से ऊपर होनी चाहिये। आज हमारे देश में कानून और व्यवस्था पर राजनीति हावी है। आम लोगों से राजनति और राजनीतिज्ञों का हाल पूछिये, जवाब मिलेगा-‘‘सब चोर हैं।’’ जाहिर है राजनीतिज्ञों ने अपनी विश्वसनियता खो दी है। इसका दृश्यावलोकन पूरे देश ने हाल ही में अन्ना हजारे के सत्याग्रह/आन्दोलन में किया। आतंक से लड़ने के लिये युद्ध की बजाय संघर्ष और राजनीति (सच्ची देश भक्ति की राजनीति) को तेज करना होगा। मामले को निर्णय के बाद टालने और लटकाने के गम्भीर परिणाम होते हैं। इसलिये देश के नाम पर राजनीति की बजाय देश के लिये राजनीति को विकसित करना होगा जिसमें कानून से ऊपर कोई भी नहीं होता।
भारत में माननीयगण एक विशेष ग्रन्थि के शिकार है। स्वयं को कानून से ऊपर मानना, अपने को विशिष्ट समझना और कानून में दखल देना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मान लिया है। सब जानते हैं कि कानून को ठेंगा दिखाने वाले 90 फीसद लोगों में से माननीय ही हैं। जिम्मेदारी के पद पर बैठे लोग कितने जिम्मेदार हैं यह पूरा देश जानता है। 26/11 के बाद अपने शरीर साज-सज्जा के लिये ज्यादा पहचाने जाने वाले गृहमंत्री की बिदाई कर यू.पी.ए. की मनमोहन सरकार ने एक दूसरे बड़बोले गृहमंत्री को कमान सौंपी लेकिन स्थिति ज्यों की त्यों रही। वर्तमान गृह मंत्री से पूछा जाना चाहिये कि 26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकी हमले को अन्तिम हमला बताने के बाद कौन-कौन से सार्थक कदम उठाए गए जिससे देश की आन्तरिक सुरक्षा मजबूत हुई हो।
भ्रष्टाचार में आंकठ डूबे देश में इसके खिलाफ आन्दोलन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को ही निशाना बनाने और सबक सिखाने में लगी सरकार भूल गई कि उसके जिम्मे इससे भी बड़ा और जरूरी काम आन्तरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करना है न कि अपने आइने को ही फोड़ना। भ्रष्टाचार आतंकवाद की सहोदर बहन है। आतंकवाद को मिटाने के लिये भ्रष्टाचार को भी मिटाना होगा, लेकिन भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी, मनमोहन सरकार और कांग्रेसी भाजपाई नेताओं से परे इस देश में आसान नहीं है भ्रष्टाचार खत्म करना क्योंकि सत्ता की राजनीति ने भ्रष्टाचार से रिष्ते बना लिये हैं। आज देश बाहरी आतंकवाद से ज्यादा आन्तरिक आतंक झेल रहा है। इसलिये सिर्फ सैनिक कारवाई से काम नहीं चलेगा। सवाल लोगों के जीवन और जीवन की आजीविका से जुड़ा हैए विकास की नीति से जुड़ा है। सम्मान से जीने के अधिकार से जुड़ा है। इसलिये हे माननीय लोगों, आसमान से उतरो और जमीन पर विचरण करो। हर आम आदमी के अश्क में तुम्हे राजनीति का नया अध्याय दिखेगा। उसे पढ़ो और देश की नयी राजनीति को समझो। जनता के पैसों पर ऐश करके कारपोरेट की दलाली से देश में शान्ति नहीं आ सकती। देश आम आदमी का है इसलिये नीतियां उसकी चलेंगी न कि कार्पोरेट की।
आतंक ने अब अपना रुख न्यायपालिका की ओर क्यों कर दिया यह भी विचार करने योग्य प्रश्न है। जब राजनीति और शाषण कानून को सही परिभाषित करने और इसे लागू करने में हिचकने लगा तो कमान न्यायपालिका ने सम्भाली। लोगों को न्याय देने के उसके जनपक्षीय फैसलों से आतंक को सीधे चोट पड़ने लगी तो आतंक ने न्यायपालिका पर निशाना लगाना शुरु किया। दिल्ली उच्च न्यायालय पर ताजा आतंकी हमला यही संदेश देता है कि जब राजनीति ने घुटने टेक दिये और आतंक से हाथ मिला लिया तो अब न्यायपालिका आखिर क्यों सक्रिय हो गईघ् देश की हर जनपक्षीय व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने की इस आतंकी साजिश को खत्म करने का एक ही रास्ता है कि देश में कानून का शासन हो, नागरिक और माननीय अनुशासित रहें, कानून का पालन करें और जनता को श्रेष्ठ मानें। लोगों के असंतोष बंदूक से नहीं दबाए जाते। उन्हें बातचीत और जनहित से सुलझाया जाता है। यह सबक भी भारतीय शासन तंत्र को समझना होगा।

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