Monday, April 6, 2020

कोरोना वायरस से क्यों कांप रही है दुनिया


कोराना वायरस का नाम अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। दुनिया का कोना-कोना अब कोरोना से वाकिफ है। वैश्वीकरण यहाँ साफ तौर पर साकार दिखता है। बीमारी, बीमारी की समझ, बीमारी से बचाव, बचाव के मध्यवर्गीय तरीके सब अब लोगों की जुबान पर हैं। इसलिए अब कोरोना पर यदि कुछ कहना है तो मैं चाहूंगा कि आप कोराना वायरस की संरचना को पहले समझ लें फिर इससे जुड़े कुछ ऐसे पहलू जिस पर ज्यादा बातें नहीं हो रहीं।
कोराना वायरस दरअसल कई विषाणुओं का एक समूह है जो पक्षियों और मनुष्यों में रोग उत्पन्न करता है। यह आरएनए वायरस है। आरएनए वायरस यानि इसके अनुवांशिक जीनोम का निर्माण आरएनए नाभिकीय अम्ल से हुआ है। यह आरएनए नाभिकीय अम्ल के मोनोमर न्यूक्लियोटाइड द्वारा सम्बन्धित जीव के अनुवांशिक सूचना की प्रतिलिपि करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस वायरस संक्रमण में व्यक्ति का श्वसन तंत्र प्रभावित होता है जिसकी वजह से जुकाम, खांसी, श्वास में दिक्कत और मृत्यु तक हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए अभी तक कोई टीका उपलब्ध नहीं है। इसलिए कोराना वायरस संक्रमण हो जाने पर केवल बुखार, जुकाम, डीहाइड्रेशन का ही इलाज किया जाता है ताकि शरीर की जीवनी शक्ति बनी रहे। चीन के वुहान शहर में उत्पन्न इस वायरस को ‘‘नोवेलकोराना वायरस 2019’’ का नाम दिया गया है। संक्षेप में इसे ‘‘कोविड-19’’कहते हैं। कोराना वायरस की सूक्ष्मदर्शी संरचना क्राउन की तरह है इसलिए इसे ‘‘कोरोना’’ नाम दिया गया। बताते हैं कि यह वायरस चीन के हुआनान शहर के सी फूड बाजार से आया।
माइक्रोबायोलोजी के अध्येता जानते हैं कि वायरस दरअसल प्रोटीन की झिल्ली में कैद आरएनए अथवा डीएनए के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं। ये स्वयं प्रजनन में अक्षम होते हैं इसलिए ये दूसरे जीवों की कोशिकाओं में घुसकर उस कोशिका के आन्तरिक मशीनरी पर कब्जा कर तेजी से अपनी वृद्धि करने लगते हैं। इस प्रक्रिया को रेटिक्यूलेशन कहा जाता है। इस तरह से वे अपना विस्तार कर उस जीव या मनुष्य के जीवन को खत्म कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पृथ्वी पर 10 टू द पावर 31 यानी 10 के आगे 31 शून्य की संख्या में वायरस हैं। यह संख्या ब्रह्मांड में सितारों की संख्या से भी लाखों गुणा ज्यादा है।

तो आप समझ रहे होंगे कि कोराना वायरस इतना खतरनाक क्यों है? कोराना वायरस को लेकर एक भ्रम यह है कि यह वायरस हवा में या ठोस सतह पर कई घंटों तक जीवित रह सकता है। इस सम्बन्ध में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में ताजा अंक में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है। अध्ययन के अनुसार कोराना वायरस (कोविड-19) जमीन, धातु, प्लास्टिक की सतहों और हवा में कई घंटे तक जीवित रहता है। अध्ययन में दावा किया गया है कि यह वायरस एरोसोल में तीन घंटे तक, तांबे पर चार घंटे तक, लकड़ी पर चौबीस घंटे तथा प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर दो से तीन दिनों तक जीवित रह सकता है।
अध्ययनकर्त्ता जेम्स लॉयड स्मिथ एवं परिस्थितिकी तथा विकासवादी जीव विज्ञान के यूसीएलए प्रोफेसर के अनुसार यह वायरस मनुष्य के सम्पर्क में आने पर काफी संक्रामक हो जाता है। इसलिए इस वायरस संक्रमण से बचने के लिए बार-बार हाथ धोना जरूरी है। अध्ययनकर्त्ता यह भी बताते हैं कि इस वायरस संक्रमण को शुरू में पता लगाना आसान नहीं है क्योंकि अधिकांश मामले में लम्बे समय तक इसके लक्षण दिखाई नहीं देते। यह वायरस अभी भी चिकित्सा विज्ञान के लिए एक पहेली ही है। कोराना वायरस से पूरी दुनिया में मरने वालों की संख्या 62 हजार को पार गई है। (यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर 5 अप्रैल 2020 तक का है)। कोराना वायरस को एक जैविक हथियार के रूप में भी देखा जा रहा है। इस सम्बन्ध में कई अन्तर्राष्ट्रीय समाचार पत्र अलग-अलग खबरें दे रहे हैं। ‘‘वाशिंगटन पोस्ट’’ के अनुसार यह वायरस चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम का एक हिस्सा था जो गलती से प्रयोगशाला के बाहर आ गया लेकिन अमरीका की ही दूसरी प्रतिष्ठित पत्रिका ‘‘फारेन पालिसी’’ ने इन अटकलों को बकवास बताया है। चीन ने भी अपने किसी घातक जैव शोध कार्यक्रम से इनकार किया है। वैसे चीन के वुहान में ष्वुहान इन्स्टीच्यूट ऑफ वायरोलोजीष् हैए जहां घातक विषाणुओं से लड़ने के लिये टीका बनाने में वैज्ञानिक सक्रिय हैं। इस संस्थान में जानलेवा वायरसों पर शोध तो होता ही है। इजराइल के खुफिया सैन्य अधिकारी डैनी शोहम का शक भी यही है कि वुहान इन्स्टीच्यूट में चीन गोपनीय जैव युद्ध कार्यक्रम से जुड़ी गतिविधियां करता है। एक सच यह भी है कि जैविक हथियारों के खतरे के बीच अभी तक जैविक हथियारों को बनानेएभंडार करने, प्रतिबन्धित करने आदि को लेकर कोई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था नहीं है। इसलिए चीन पर जैविक हथियार सम्बन्धी आरोपों की कोई जांच की गुंजाइश नहीं लगती। चीन सहित अमरीका, रूस, जैसी सभी बड़ी ताकतें जैविक हथियार संधि के पालन की जांच व्यवस्था को स्वीकार करने को तैयार ही नहीं हैं क्योंकि ये सभी देश जैविक हथियारों को बनाने और परीक्षण में स्वयं लगे हैं। अब कोराना वायरस के आक्रमण से यह डर ताजा हो गया है कि कभी भी कोई भी आतंकवादी संगठन इस हथियार को प्राप्त कर दुनिया को तबाह कर सकता है।
कहने को जैव हथियारों के इस्तेमाल को प्रतिबन्धित करने के लिए 1925 में ही जिनेवा में एक सन्धि हुई थी लेकिन इसमें जैव हथियारों के विकास और भंडारण को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी। बाद में सन् 1972 में ये प्रस्ताव इस सन्धि में जुड़े और 26 मार्च 1975 को इसे लागू किया गया। अगस्त 2019 तक इस सन्धि पर 183 देशों ने भी इस्ताक्षर कर दिये लेकिन जब बड़े देश ही इस सन्धि की कोई परवाह नहीं कर रहे तो क्या कहा जा सकता है।
बहरहाल कोराना वायरस संक्रमण एक खतरनाक संक्रमण है क्योंकि यह बहुत धीरे-धीरे पनपता है और शरीर में पहुंचकर कर तेजी से शरीर की जीवनी शक्ति को नष्ट करने लगता है और अन्ततः व्यक्ति की मौत हो जाती है। कोराना वायरस संक्रमण का स्टेज-3 दुनिया या किसी भी देश के लिए ज्यादा मारक है क्योंकि इसमें एक व्यक्ति से दूसरे में संक्रमण फैलने की सम्भावना प्रबल होती है इसलिए ‘लाकडाउन’ को इसके बचाव का हथियार बताया गया है। ‘‘सोशल डिस्टेन्सिंग’’ की भी बात है जिसका मतलब है कि व्यक्ति आपस में एक दूरी (कम से कम 1 मीटर) बनाकर रहें। मैं इसे ‘‘फिजीकल डिस्टेन्सिंग’’;भौतिक दूरीद्ध कहूंगा। ‘‘सोशल डिस्टेन्सिंग’’ का अर्थ तो घातक है। भारतीय समाज में वैसे ही भेदभाव बहुत गहरा है इसलिए केवल शारीरिक एवं भौतिक दूरी बनाएं, सामाजिक सम्बन्ध, व्यवहार कायम रखें क्योंकि जब सामूहिक रूप से मौत सामने हो तो आपकी सामाजिकता ही आपको जीने के लिए संजीवनी का काम करेगी। एक दो मनुष्य भले मर जाएं लेकिन मानवता बचनी चाहिए। यही प्रकृति का संदेश भी है। कोराना वायरस एक चुनौती है और संदेश भी। क्या आप इसे समझ रहे हैं?

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