Wednesday, February 6, 2008

बढ़ रहा है होमियोपैथी की लोकप्रियता का ग्राफ

-डा. ए. के. अरुण

लोगों में होमियोपैथी की बढ़ती लोकप्रियता ने सरकार और समाज दोनों को खासा प्रभावित किया है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ही आंकड़ों को मानें तो देश में लगभग 60 प्रतिशत रोगी किसी न किसी रूप में अपनी चिकित्सा के लिए भारतीय चिकित्सा पद्धति (आयुर्वेद, सिद्ध, युनानी) तथा होमियोपैथी को अपना रहे हैं। ऐसे ही देश में लगभग 7 लाख प्रशिक्षित चिकित्सक होमियोपैथी व भारतीय चिकित्सा पद्धति से जुड़े़ है। एसोचैम ने अपने एक अधिकारिक वक्तव्य में कहा है कि होमियोपैथी की बढ़ती लोकप्रियता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता हे कि हामियोपैथी का घरेलू बाजार जो आज 1250 करोड़ का है अगले तीन वर्षों में बढ़ कर 2600 करोड़ से भी ज्यादा हो जाएगा। एसोचेम के अध्यक्ष वेणुगोपाल एन. धूत कहते हैं ‘आज भारतीय फार्मा उद्योग की विकास दर 13-15 फीसद है जबकि होमियोपैथी 25-30 फीसद की दर से विकास कर रही है।
अभी हाल ही में मातृ व शिशु स्वास्थ्य के लिए होमियोपैथी को सर्वोत्तम पद्धति बताते हुए केन्द्र सरकार ने एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया है। सरकार ने माना है कि महिलाओं में गर्भावस्था व अन्य परिस्थितियों में होमियोपैथी ज्यादा सुरक्षित और कारगर दवा के रूप में लाभ देती है। ऐसे ही बच्चों के अनेक रोगों में तो होमियोपैथी रामबाण है। केन्द्र सरकार ने नारा दिया है ‘मां हो स्वस्थ्य, बच्चा मुस्कराए-होमियोपैथी दोनों को भाए।''
सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक 1 लाख में 301 तथा प्रत्येक 1 हजार में 58 नवजात बच्चों की मौत हो जाती है। शिशु मृत्यु दर भी प्रति हजार 17 है। सरकारी संकल्प में इस दर को और कम करना है। होमियोपैथी की विशेषता है कि महिलाओं और बच्चों में हाने वाले सामान्य रोग जो मृत्यु के मुख्य कारक हैं (जैसे- दस्त, खुनी की कमी, गर्भावस्था के विकार आदि) को सामान्य होमियोपैथिक चिकित्सा से ठीक किया जा सकता है। केन्द्रीय होमियोपैथिक अनुसंधान परिषद के निदेशक प्रो. चतुर्भूज नायक बताते है, ‘महिलाओं और बच्चों के लगभग सभी रोगों में होमियोपैथिक चिकित्सा न केवल लाभप्रद है बल्कि यह बेहद सस्ती भी है। इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ता।''
केन्द्र सरकार के होमियोपैथिक सलाहकार डा. एस.पी. सिंह कहते हैं, ''मां और बच्चों के लिए होमियोपैथी को प्रचारित करने का यह अभियान राष्ट्रीय स्तर से जिला स्तर तक चलाया जा रहा है। इस अभियान में होमियोपैथिक चिकित्सकों के अलावा एलोपैथिक चिकित्सक, समाजकर्मी, योजनाकार, मीडिया व वैज्ञानिकों को भी जोड़ा जा रहा है।
इसमें सन्देह नहीं कि भारतीय चिकित्सा पद्धतियां न केवल कारगर हैं बल्कि यह वैज्ञानिक और तार्किक भी हैं। भारतीय परिस्थितियों में आम लोगों के लिए होमियोपैथी और आयुर्वेद से माकुल और कोई चिकित्सा पद्धत्ति नहीं लगती। यहां अनुसंधान की भी तमाम सम्भावनाएं भरी पड़ी हैं। जन सुलभ होने के साथ साथ होमियोपैथी और आयुर्वेद किफायती भी हैं। उदाहरण के लिए गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए जहां एलोपैथिक विधि से आपरेशन का खर्च 10-20 हजार रूपये बैठता है वहीं होमियोपैथी व आयुर्वेद में यह चिकित्सा 200 से 500 रूपये या अधिकतम 1000 रूपये में हो सकती है। सोराइसिस की चिकित्सा हजारों रूपये खर्च कर भी एलोपैथी में पूरी नहीं होती जबकि बहुत न्यूनतम खर्चे में होमियोपैथी से सोराइसिस का उपचार हो जाता है। फिस्टुला की सर्जरी पर 10-15 हजार रूपये खर्च होने के बावजूद भी एलोपैथी में स्थाई लाभ नहीं मिलता जबकि क्षार सुत्र तकनीक से आयुर्वेद महज 400 से 1000 रूपय में उपचार कर स्थाई लाभ दे सकता है।
सच है कि मीठी गोलियों के रूप में होमियोपैथिक दवाएं बच्चों द्वारा बेहद पसन्द की जाती है। विशेषकर बच्चों के दस्त, पेट दर्द, कान के संक्रमण, दांत निकलने के दौरान होने वाली कठिनाइयों आदि में होमियोपैथिक चिकित्सा बेमिशाल है। होमियोपैथी के जाने-माने चिकित्सक तथा राष्ट्रपति के पूर्व चिकित्सा सलाहकार डा. दीवान हरिष्चन्द्र बताते हैं ‘होमियोपैथी महज एक्यूट रोग ही नहीं बल्कि कई गम्भीर और एलोपैथी में लाइलाज हो चूके रोगों में भी कारगार है। आवष्यकता है नये-नये अनुसंधान की। हाल के वर्षों में जो भी होमियोपैथिक अनुसंधान हुए हैं उससे कई गम्भीर रोगों के इलाज का रास्ता भी खुला है।
एच.आई.वी./एड्स और होमियोपैथी पर वर्षों से काम कर रहे वरिष्ट होमियोपैथिक वैज्ञानिक डा. बी.पी. सिंह कहते हैं, ‘महज शिशु रोग ही नहीं होमियोपैथी का दायरा तो बहुत बड़ा है। अनेक घातक व जान लेवा रोगों में होमियोपैथी अच्छी दवा सिद्ध हो रही है।'' डा. सिंह के अनुसार, ‘एच.आई.वी./एड्स के मामले में होमियोपैथी एलोपैथी से कम नहीं है।''
महिलाओं और बच्चों के विभिन्न रोगों में होमियोपैथी की एकोनाइट, एन्टीम क्रूड, बेलाडोना, कैलकेरिया कार्ब, फेरम फॅास, जेल्सेमियम, ग्रेफाइटिस, इग्निशीया, क्रियोजोट, नैट्रमम्यूर, पल्साटिला, सिपिया आदि दवाएं बेहतर हैं बशर्ते की रोगी का शारीरिक और मानसिक लक्षण दवा के लक्षणों से मेल खाए। एस.एन.पोस्ट ग्रेजुएट इन्स्टीच्यूट आफ होमियोपैथी, इलाहाबाद के निदेशक प्रो. एस. एम. सिंह कहते हैं, ‘होमियोपैथी की लोकप्रियता इतनी है कि कोई 41 होमियोपैथिक दवाओं को (ओवर द काउन्टर ड्रग) ओ. टी. सी. दवा के रूप में घोषित किया गया है। इन दवाओं के लिए चिकित्सक के लिखित सलाह की जरूरत नहीं है।''
(आउटलुक से साभार)
(लेखक वरिष्ट होमियोपैथिक चिकित्सक एवं जनस्वास्थ्य वैज्ञानिक हैं)

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

डा अरुण,
आपका ब्लाग बहुत अच्छा लगा। अंग्रेजी में तो स्वास्थ्य पर असीमित सामग्री है; किन्तु हिन्दी और भारतीय भाषाओं में विश्वसनीय हिन्दी स्वास्थ्य सामग्री का अभी भी अभाव है।

आप जैसे योग्य लोग जब हिन्दी में लिखेंगे तो हिन्दी और हिन्दुस्तान की जनता का कल्याण हो सकेगा।

ऐसे ही लिखते रहें। इसी लगे आपसे एक आग्रह करूंगा कि हिन्दी विकिपीडिया पर हिन्दी में मेडिकल विषयों पर लिखें। ऐसे ही योगदानों से हिन्दी-विकिपीडिया के रूप में धीरे-धीरे हिन्दी में भी सभी विषयों का विश्वकोष तैयार हो जायेगा।

Dr Prabhat Tandon said...

आज अकस्मात ही आप के ब्लाग तक पहुँचा , देख कर बहुत ही प्रसन्नता हुई , लिखने का क्रम निरन्तर जारी रखें , ऐसी उम्मीद रखता हूँ ।
डा. प्रभात टन्डन
www.drprabhattandon.wordpress.com

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