Saturday, June 25, 2011

सच्चे सत्याग्रह के मायने

डा. ए.के. अरुण
‘‘काला धन’’ और ‘‘भ्रष्टाचार’’ के मुद्दे पर नौ दिन चले बाबा रामदेव के नाटकीय आन्दोलन ने ‘सत्याग्रह’ पर एक नयी बहस छेड़ दी है। कथित देशभक्ति और ईमानदारी के दंभ में डूबे बाबा ने सत्याग्रह को जिस तरीके से पुनः परिभाषित करने की कोशिश की उससे ‘सत्याग्रह’ के नाम पर ही बट्टा लग गया है। ‘‘सत्याग्रह’’ को नये अन्दाज में लोगों ने राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘‘लगे रहो मुन्ना भाई’’ में भी देखा था। अब बाबा रामदेव के इस सत्याग्रह ने तो महात्मा गांधी के ब्रह्मास्त्र कहे जाने वाले ‘‘अनसन सत्याग्रह’’ की तो बाट ही लगा दी।
महात्मा गांधी ने सत्याग्रह को ‘‘निष्किृय प्रतिरोध’’ की संज्ञा दी थी। वे कहते थे कि ‘‘यह एक चौमुंहा खड्ग की तरह है। यह एक बूंद भी रक्त बहाए बगैर दूरगामी परिणाम देता है। यह कठोर से कठोर हृदय को भी पिघला सकता है। यह दुर्बल मनुष्य का शस्त्र नहीं हैं।’’
महात्मा की एक प्रसिद्ध और प्रमाणिक पुस्तक हिन्द स्वराज में जब पाठक उनसे पूछता है कि ‘‘आप जिस आत्मशक्ति और सत्य की बात कर रहेे हैं उसकी सफलता के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण आपके पास हैं?’’ तो गांधी उत्तर में तुलसी दास के रामचरित मानस से एक दोहा उदृत करते हैं-
‘‘दया धर्म को मूल है, देह मूल अभिमान
तुलसी दया न छोड़िये, जब लग घट में प्राण।’’
वे कहते हैं कि इतिहास केवल युद्धों का ही नहीं सृष्टि और निर्माण का भी है। यदि दुनिया में केवल युद्ध ही हुआ होता तो दुनिया कब की खत्म हो गई होती और आज एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचता।
गांधी ने ‘निष्किृय प्रतिरोध’’ के प्रतीक के रूप में यीशु, डेनियल, क्रेमर, लेटिमर, रिडली आदि का उदाहरण देते हुए लिखा है कि इन लोगां ने सत्याग्रह करते हुए मृत्यु को वरण किया लेकिन अन्याय के सामने झुके नही। ऐसे ही सुकरात ने किया। टाल्सटाय ने भी रूस में जारों के खिलाफ सत्याग्रह किया और अन्ततः सत्य को स्थापित किया। गान्धी ने सत्याग्रह को ‘‘सविनय अवज्ञा’’ की संज्ञा दी। उन्होंने लिखा है कि अवज्ञा सविनय तभी मानी जा सकती है जब वह सच्चे हृदय से की जाए और संयमित हो। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके पीछे कोई द्वेष या घृणा की भावना न हो।
महात्मा गांधी ने 1921 में अपनी पत्रिका यंग इन्डियन में लिखा है कि सविनय अवज्ञा नागरिक का जन्मजात अधिकार है। वह अपनी आदमियत को खोए बगैर इस अधिकार को छोड़ने का साहस नहीं कर सकता। सविनय अवज्ञा से कभी अराजकता उत्पन्न नहीं होती। वह आपराधिक अवज्ञा से उत्पन्न हो सकती है। प्रत्येक राज्य आपराधिक अवज्ञा को बल पूर्वक कुचल देता है।’’
महात्मा गंधी ने अपनी आटोबायोग्राफी में भी लिखा है कि, ‘‘सत्याग्रही विवेकपूर्वक तथा स्वेछा से समाज के नियमों का पालन करता है; क्योंकि वह इसे अपना पवित्र कर्तव्य मानता है। इस क्रम में वह इस स्थिति मंें आ जाता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित ऐसा निर्णय वह कर सके।’’ उन्होंने अपनी एक अन्य प्रसिद्ध पत्रिका हरिजन में लिखा है कि’’ सत्याग्रह की पहली अपरिहार्य पूर्व शर्त यह है कि उसमें भाग लेने वाले या सामान्य जनता की ओर से हिंसा शुरू न किये जाने की पक्की गारन्टी हो।’’
बाबा रामदेव ने अपने सत्याग्रह को राष्ट्रधर्म बताया है और कहा है कि भ्रष्टाचार करने वाले और इसे बचाने वाले दोनों राष्ट्रद्रोही हैं और राष्ट्रद्रोहियों की एक मात्र सजा है सजा-ए-मौत। लेकिन महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की अपरिहार्य पूर्व शर्त बताई थी-अहिंसा।
सत्याग्रह के बारे में चर्चा करते हुए हमें इसके स्वरूप पर भी विमर्श करना होगा। बकौल महात्मा गांधी- ‘‘सत्याग्रह शब्द का जनक होने के नाते मैं यह स्पष्ट करने की अनुमति चाहूंगा कि इसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रच्छन्न या प्रकट, सभी प्रकार की हिंसा वर्जित है। इसमें मनसा, वाचा, कर्मणा हिंसा का कोई स्थान नहीं है। विरोधी को हानि पहुंचाने के विचार से उसके प्रति द्वेष भाव रखना या उससे अथवा उसके बारे में कठोर वचन बोलना सत्याग्रह को तोड़ना है।... सत्याग्रह में शालीनता है, यह कभी चोट नहीं पहुंचाता। यह क्रोध या दुर्भावना का परिणाम नहीं होना चाहिये। इसमें बतंगड़पन, अधैर्य और शोर शराबे के लिये भी कोई स्थान नहीं है। यह बाध्यता का प्रत्यक्ष विलोम है।’’ महात्मा गांधी ने आगे कहा है-‘‘सत्याग्रह का संघर्ष उसके लिये है जो भावना का दृढ़ हो, जिसमे मन में न सशंय हो और न भीरूता। सत्याग्रह हमें जीने और मरने दोनों की कला सिखाता है।’’
इन दिनों सत्याग्रह के प्रयोग हर गली नुक्कड़ पर देखे जा सकते हैं। राजनीतिक दलों स्वार्थी, पदलोलुप नेताओं और उनके भाड़े के समर्थक जब सत्याग्रह करते हैं जब इस सत्याग्रह का स्वरूप देखते बनता है। वातानुकुलित पन्डाल में पांच सितारा सत्याग्रह की झलक हम सबने पिछले कुछ महीनों में कई बार देखी है। कथित सत्याग्रह में सत्ता पक्ष और विपक्षी दल सभी शामिल रहे हैं।
महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की संहिता का जिक्र करते हुए स्पष्ट लिखा है-जिसमें कानून का पालन करने की सहज वृति नहीं वह सत्याग्रही ही नहीं। ‘‘उन्होंने सत्याग्रह को सत्याग्रहियों का ब्रह्मास्त्र बताया है। सत्याग्रही की योग्यता का जिक्र करते हुए गांधी लिखते हैं-‘‘सत्याग्रही की सत्य में अटूट आस्था होनी चाहिये। उसे अहिंसा को अपना धर्म मानना चाहिये। उसे पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए तथा अपने ध्येय की पूर्ति के लिये अपना जीवन और सम्पत्ति को न्योछावर करने के लिए सदैव तैयार करना चाहिये। उसका जीवन सादा और उच्च विचार वाला हो। उसे सदा जेल माने के लिए तैयार रहना चाहिये। उसे मृत्यु का भय न हो।’’ महात्मा ने साफ लिखा है कि सत्याग्रह में कपट, मिथ्या या किसी भी प्रकार के असत्य के लिये कोई स्थान नहीं है। गांधी ने सत्याग्रही को साफ हिदायत दी है कि सत्याग्रही को दमन से बिल्कुल नहीं डरना चाहिये।
महात्मा गांधी सत्याग्रह को आत्म बल का पर्याय बताते हैं। वे कहते हैं कि यह शस्त्रबल से भी श्रेष्ठ है। इस तर्क के पक्ष में गांधी एक सवाल करते हैं। वे पूछते हैं-‘‘तोप से सैंकड़ों को उड़ाने में साहस चाहिये या तोप से बंध कर मुस्कुराते हुए चिंदी-चिंदी होकर बिखर जाने में? असली योद्धा कौन है? वह जो मौत को अपने जिगरी दोस्त की तरह साथ लेकर घुमता है या वह जो दूसरों की मौत अपने नियंत्रण में रखता है? साहस विहीन और पुरुषत्वहीन कभी सत्याग्रही नहीं हो सकते।’’
आजादी के बाद वैश्वीकरण के दौर में सरकारों के निरकुंश व जन विरोधी होने के अनेक प्रमाण देखे जा सकते हैं। कांग्रेस हो या भाजपा, समाजवादी पार्टी हो या बसपा, दक्षिण भारत के छोटे राजनीतिक दल हों या और कोई लगभग सभी अब मूल्यृवीहिनता के पर्याय हैं। कम्पनियों और पूंजीपतियों के लिये लठैत की भूमिका निभा रहे ये सभी राजनीतिक दल जब भी सत्ता में होते हैं एक जैसा ही वर्ताव करते हैं, ऐसे में जनता का उद्वेलित होना स्वाभाविक है लेकिन सत्याग्रह की सही समझ के अभाव में सत्याग्रह के नाम पर हिंसा और प्रतिहिंसा ही अभिव्यक्त होती है। जाहिर है इससे निरकुंश सरकार की तानाशाही वृति को ही बल मिलता है। अन्याय का विरोध करने से पहले जरूरी है कि विरोध के तरीके और उसके अस्त्र, अस्त्र चलाने की तकनीक, प्रशिक्षण आदि पर ठीक से विचार हो वर्ना यह ‘‘ब्रह्मास्त्र’’ फिस्स हो जाएगा और इससे जुल्म करने वाले को ही बल मिलेगा।
लेखक जाने माने चिकित्सक एंव अहिंसावादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

1 comment:

omshah said...

Dr.Arunji,
What a nice,complete & a true interpretation you have presented of Satyagrha and Ahinsha as a tool of Mahatma Gandhi Freedom Struggle !

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