Thursday, October 28, 2010

डेंगू के साथ कदमताल करता चिकुनगुनिया


राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र इन दिनों अति सक्रिय महामारी डेंगू के साथ साथ चिकुनगुनिया की चपेट में है। चिकुनगुनिया बुखार भी डेंगू की तरह ही ‘‘ग्रुप ए वायरस’’ से फैलने वाला संक्रामक रोग है। डेंगू और चिकुनगुनिया के लक्षणों में कई समानताओं की वजह से लोगों में भय और दहशत की स्थिति बनी रहती है। डेंगू की तरह चिकुनगुनिया बुखार भी एडिस, क्यूलेक्स एवं मन्सोनिया नामक मच्छरों से फैलता है।
तंजानिया से 1952 में शुरू हुआ यह संक्रामक बुखार अब अफ्रीकाए एषिया एवं योरोप के कुछ क्षेत्रों में फैल गया है। भारत में पहली बार यह बुखार 1963 में कोलकाता तथा 1965 में मद्रास में कहर बरपाया था। तब अकेले मद्रास में कोई 3 लाख लोग इस बुखार की चपेट में थे। बीच में यह बुखार लगभग तीन दशकों तक शान्त रहा। मान लिया गया था कि बुखार इस क्षेत्र को छोड़ चुका है लेकिन 1996 तथा सन् 2003 में इस बुखार ने फिर दहशत फैलाया। सन् 2007 में इस बुखार की चपेट में यहां 1.25 मिलियन लोग थे।
अभी भारत के लगभग 15 प्रदेशों में चिकुनगुनिया बुखार का संक्रमण है। सरकारी आंकड़े सम्मिलित रूप से उपलब्ध नहीं हैं लेकिन दिल्ली और इसके आसपास चिकुनगुनिया और डेंगू के मरीजों की संख्या दस हजार से ज्यादा है। यों तो चिकुनगुनिया बुखार डेंगू की तुलना में कम खतरनाक होता है लेकिन उसे नजरअन्दाज करने का परिणाम जानलेवा भी हो सकता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2003 के मुकाबले वर्ष 2010 में अब तक चिकुनगुनिया बुखार से मरने वालों के आंकड़ों में काफी गिरावट आई है लेकिन व्यावहारिक रूप से देखें तो इस बुखार के संक्रमण के मामले पहले से ज्यादा बढ़े हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय केे अनुसार डेगू और चिकुनगुनिया को नियंत्रित करने के लिये जनवरी 2007 में एक दिशा निर्देश सभी राज्य सरकारों के लिये जारी किया गया था। देश में 110 सेेन्टिनल सर्विलान्स अस्पताल की स्थापना की गई जिसे बढ़ाकर वर्ष 2009 में 170 कर दिया गया। इन सर्विलान्स अस्पतालों को देश के श्रेष्ठ 13 एपेक्स रेफरल लैब से जोड़ दिया गया। लेकिन डेंगू और चिकुनगुनिया के संक्रमण के मामले घटने का नाम नहीं ले रहे।
केन्द्र सरकार ने नेशनल इनस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एन.आई.वी.) पूणे के माध्यम से देश भर में डेंगू और चिकुनगुनिया के जांच के लिये ‘‘आई.जी.एम. मैक एलिजा टेस्ट’’ किट निःशुल्क उपलब्ध कराए हैं लेकिन इन सबके बावजूद निजी पैथ लैब में ये जांच 2 से 3 हजार रुपये की मंहगी दर पर धड़ल्ले से किये जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली और एन.सी.आर. में रोजाना 25 से 30 हजार ऐसेे जांच निजी पैथ लैब में हो रहे हैं। केन्द्र सरकार दावा कर रही है कि देश में महामारी जांच किट की कमी नहीं है लेकिन राजधानी के ही कई बड़े अस्पताल किट के अभाव में डेंगू चिकुनगुनिया के संदिग्ध मरीजों को वापस भेज रहे हैं।
चिकुनगुनिया के भारत में बढ़ते संक्रमण ने यहां के जन स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। देश में जन स्वास्थ्य प्रबन्धन की मुकम्मल नीति के अभाव में सामुदायिक रोग और महामारियों में वृद्धि हो रही है। अन्धाधंुध बढ़ता शहरीकरण, शहर व गांवों में जमा कूड़े के ढेर, बन्द सीवर, जमा पानी, गन्दे पानी में पनपते मच्छर, बिगड़ी जीवनशैली से लोगों में घटती रोग निरोधी क्षमता सब मिलकर जन स्वास्थ्य समस्या को बढ़ा रहे हैें। निजी अस्पतालों की बढ़ती तादाद से भी जनस्वास्थ्य की उपेक्षा हो रही है। सरकारी लापरवाही और भ्रष्टाचार का आलम यह है कि सकारी ब्लड बैंक सूने पड़े हैं जबकि निजी ब्लड बैंकों में एक यूनिट प्लेटलेट्स की कीमत दस से पन्द्रह हजार रुपये है। बीमार लोगों की जान बचाने का वास्ता देकर उनसे हजारों-लाखों रुपये की लूट इस दौर में स्वास्थ्य व्यवस्था के निजीकरण की सबसे बड़ी विडम्बना है। उस पर भी सबसे शर्मनाक बात यह है कि नीतिगत सरकारी व प्रशासनिक विफलता से चरमराई जन स्वास्थ्य व्यवस्था का इलाज सरकार निजीकरण में ढूंढ रही है। बहरहाल चिकुनगुनिया और डेंगू पर नियंत्रण के लिये जनस्वास्थ्य के इन सभी पहलुओं पर गौर करना होगा।
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