दुनिया भर में कोरोना वायरस रोग (सीओवीआईडी-19) से लगभग एक लाख से भी ज्यादा लोगों के संक्रमित होने और 3000 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) भी मान रहा है कि यह संक्रमण अब न केवल वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है बल्कि यह और तेजी से फैल सकता है और लाखों नये लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। अब तक 70 से भी ज्यादा देशों में फैले कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर भारत में चिता इसलिये अधिक है कि भारत में आबादी घनत्व (455 व्यक्ति प्रति किलोमीटर), चीन के मुकाबले 3 गुणा और अमरीका के मुकाबले (36 व्यक्ति प्रति किलोमीटर) 13 गुणा है। इस वायरस से पीड़ित व्यक्ति महज कुछ फीट की दूरी पर खड़े 2 से 3 व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसके अलावा भारत में लोग आदतन भी ऐसी संक्रामक बीमारियों में भी एहतियात नहीं बरतते। यह तो कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़ा इनसानी जिन्दगी और उसके सेहत की बात है लेकिन इसका एक दूसरा पहलू है कि इस वायरस ने दुनिया भर के बाजारों की पल्स रेट को काफी नीचे ला दिया है। अर्थशास्त्रियों के अनुमान के अनुसार भारत से लेकर अमरीका तक के शेयर बाजारों में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है।
अन्तरराष्ट्रीय पत्रिका ‘‘द इकोनोमिस्ट’’ के ताजा आंकड़ों में कई अन्तरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने दावा किया है कि कोरोना वायरस संक्रमण को काबू करने के रास्ते लगभग बन्द हो चुके हैं। चीन से फैले इस खतरनाक वायरस के संक्रमण को ‘सख्ती’ से रोकना चीन में तो सम्भव हो गया लेकिन भारत सहित अन्य देशों में मुश्किल यह है कि यहां अफवाहों में जीने वाले लोगों/समूहों की भरमार है और उनमें सही-गलत को पहचानने की क्षमता भी कम है मसलन कोरोना वायरस संक्रमण के फैलने को काबू करना आसान नहीं होगा। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि इस वायरस में मृत्यु दर (3.4 प्रतिशत) व अन्य वायरस में मृत्युदर से कम है इसलिये संक्रमण के बाद लोगों के जीवित रहने की सम्भावना तुलनात्मक रूप से ज्यादा है। उल्लेखनीय है कि स्वाइन फ्लू (0.02 प्रतिशत), इबोला (40.40 प्रतिशत), मर्स (34.4 प्रतिशत) तथा सार्स (9.6 प्रतिशत) की मृत्यु दर से कोरोना वायरस की मृत्युदर काफी कम है।
कोरोना वायरस संक्रमण (सीओवीआईडी-19) को दुनिया भर में आर्थिक विकास का सबसे बड़ा रोड़ा माना जा रहा है। ‘आक्सफोर्ड इकोनोमिक्स’ ने आशंका जताई है कि कोरोना वायरस संक्रमण वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है और यह वैश्विक विकास दर का 1.3 प्रतिशत कम कर सकती है। ‘‘डन एण्ड ब्रैडस्ट्रीट’’ ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि चीन से शुरू कोरोना वायरस के संक्रमण का असर जून महीने तक बने रहने की संभावना है और इसकी वजह से वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर एक फीसद नीचे आ सकती है। रिपोर्ट के अनुसार इस वायरस का असर चीन की अर्थव्यवस्था के ऊपर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। चीन में स्थित दुनिया की 2.2 करोड़ कम्पनियां 50 से 70 प्रतिशत के घाटे में हैं। चीन में कोरोना के घातक असर का भारत की अर्थव्यवस्था पर गम्भीर परिणाम के संकेत हैं। हालांकि भारत सरकार दावे कर रही है कि इसका उसकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर नहीं होगा।
चीन के कोरोना वायरस संक्रमण का भारत के दवा बाजार पर गम्भीर असर की आशंका यहां के फार्मा कम्पनियों के सीईओ को सताने लगी है। वर्ष 2018-19 में भारत का एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएन्ट्स (एपीआई) और बल्क ड्रग भारत आयात 25,552 करोड़ रुपये था जिसमें चीन का हिस्सा 68 प्रतिशत था। विगत तीन वर्षों में फार्मा सेक्टर में भारत की चीन पर निर्भरता 23 प्रतिशत बढ़ी है। एपीआई पर लो-प्राफिट मार्जिन के कारण भारतीय फार्मा इन्डस्ट्री एपीआई का आयात कर यहां दवा बनाकर दूसरे देशों को निर्यात करती है। अमरीकी बाजार को ड्रग्स आपूर्ति करने वाली 12 प्रतिशत मैन्युफैक्चरिंग साइट्स भारत में हैं और भारतीय कम्पनियों का एपीआई स्टाक अब समाप्त हो गया है। दवा उद्योग के साथ-साथ यही स्थिति लगभग सभी अन्य कम्पनियों की भी है। चीन के बुआश शहर में जहां से कोराना का संक्रमण फैला वहाँ की एक करोड़ से ज्यादा अन्तरराष्ट्रीय कम्पनियों में शटडाउन चल रहा है।
कोरोना वायरस से वैश्विक अर्थव्यवस्था और चीन कैसे प्रभावित है इसे समझने के लिये 2003 को याद करें। सन् 2003 में एक घातक वायरस संक्रमण सार्स (सिवियर एक्यूट रेसीपरेट्री सिन्ड्रोम) की वजह से लगभग 8000 लोग संक्रमित थे और दुनिया भर में कोई 800 लोगों की मौत हो गई थी। उस वर्ष चीन की विकास दर 0.5 से 1 प्रतिशत कम हो गई थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था को 40 बिलियन डालर (2.8 लाख करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ था। सार्स संक्रमण के समय चीन दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और वैश्विक जीडीपी में उसका योगदान केवल 4.2 प्रतिशत था। अब चीन विश्व की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है और ग्लोबल जीडीपी में उसका योगदान 16.3 प्रतिशत है। जाहिर है कि चीन में बिगड़ी अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर असर डालेगी।
कोरोना वायरस संक्रमण (सीओवीआईडी-19) के भयावह प्रभाव, उससे प्रभावित विश्व और इससे बचाव की चर्चा में एक चर्चा यह भी है कि इसकी वजह से कई सामानों की कीमतें घटी हैं। मार्केट रिसर्च कम्पनी जे पी मार्गन कह रहा है कि कोरोना की वजह से तेल की सप्लाई चीन से कम होने का फायदा भारत को मिलेगा क्योंकि इससे भारत से तेल का निर्यात बढ़ेगा। सच्चाई इससे उलट है। वास्तव में भारत तेल का आयातक देश है। ऐसे में यह दावा टिकाऊ नहीं लगता। इस बीच भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के भौंडे दावे भी देश में चर्चा में हैं और सोशल मीडिया पर लोगों में गलतफहमी फैला रहे हैं। कोई गोमूत्र सेवन की सलाह दे रहा है तो कोई गोबर स्नान की बात कह रहा है। इस लेख के माध्यम से मैं प्रबुद्ध पाठकों/नागरिकों से निवेदन करूंगा कि ऐसे बेवकूफी और वाहियात बातों में न फंसे और तार्किक समाधान और जानकारियों को ही महत्व दें।
कोरोना वायरस संक्रमण दरअसल कथित आध्ुनिक सभ्यता में झटपट विकास और तुरन्त मुनाफे के लालच में अपनाए जा रहे दोषपूर्ण जीवन शैली का रोग है। यह रोग प्रकृति के खिलाफ महज तात्कालिक सुविधा और बढ़ती मांशाहार की प्रकृति का भी प्रतीक है। यह एक चेतावनी भी है कि पशुओं और पक्षियों को महज खाद्य समझने का परिणाम यह भी हो सकता है जिसमें आदमी क्या सभ्यताएं नष्ट हो सकती हैं। याद कीजिये जब सन् 1996 में पागल गाय रोग ;मैड काऊ डिजीजद्ध फैला था तब ब्रिटेन में लाखों गायों को मार कर जला दिया गया था। लेकिन लोगों ने अपनी प्रव्रति नहीं बदली। वे गायों को जीव की बजाय एक मांश उत्पाद समझकर आज भी वैसे ही इस्तेमाल कर रहे हैं जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं हो।
कोरोना वायरस के बहाने एक बात जो महत्त्वपूर्ण है वह यह कि एन्टीबायोटिक दवाओं के आविष्कार और विस्तार के बाद रोगाणुओं ने बढ़ना बन्द नहीं किया। जैसे जैसे चिकित्सा विज्ञान नये एन्टीबायोटिक्स बनाता गया और बैक्टीरिया और वायरस उसके विरुद्ध अपनी प्रतिरोध शक्ति भी बढ़ाते गए। जवाब में दवा कम्पनियों ने भी नई दवाओं पर शोध (?) में निवेश बढ़ा दिया। मामला मुनाफे से जुड़ा है तो इसके प्रचार- प्रचार में कोई कमी का सवाल ही नहीं। अब वायरस और दवा बनाने वाली कम्पनियों में होड़ चल रही है। अमरीकी सूक्ष्म जीव विज्ञान अकादमी मान रही है कि वायरस क्रमिक विकास की प्राकृतिक ताकत से लैस हैं और वे हमेशा बिना रुके बदलते-बढ़ते रहेंगे और दवाओं पर भारी पड़ेंगे? इसलिए इन वायरसों से निबटने का तरीका कुछ नया सोचना होगा। ये वायरस हौआ तो बन गए हैं क्योंकि आज इनका नाम ऐसे लिया जा रहा है मानो ये किसी आतंकवादी संगठन के सदस्य हों। विज्ञापनों में तो इन वायरस को विध्वंसक दुश्मन के रूप में दिखाया जाता है ताकि इन्हें मारने वाले महेंगे रसायन बेचे जा सकें। कोरोना वायरस के मामले में भी यही हो रहा है। आज वायरस के घातक असर से लोगों को बचाने के लिये नये चिंतन की जरूरत है। क्या हम वायरस, उसके प्रभाव, रोग और उपचार की विधि पर स्वस्थ चिंतन और चर्चा के लिये तैयार हैं?